इब्राहीम ‘अश्क’ के दोहे
पल-पल कम होते रहे, जीवन के दिन-रात।किश्तों में करता रहा, वक्त हमेशा घात।।
अल्लाह तेरो नाम है, ईश्वर तेरो नाम।
तेरे सच्चे नाम से, मेरे सुबहो-शाम।।
मैं तो सूफी हो गया, मन में जागा त्याग।
सारे जग को छोडक़र, मोल लिया बैराग।।
बने बाँस की बाँसुरी, छोड़े क्या-कया राग।
सीने में हर संग के, छुपी हुई है आग।।
चाहत में श्रद्धा छुपी, श्रद्धा में सम्मान।
चाहत से मुँह मोडऩा, खुद का है अपमान।।
इक माँ की दो बेटियाँ, हिन्दी, उर्दू नाम।
दोनों से मिलकर बना, गंगा-जमनी जाम।।
हर पल मैं करता रहूँ, ये जीवन की भूल।
सबके होंठों पर रखूँ, मैं दोहे के फूल।।
एक नजर में जान ले, किसको कितनी प्यास।
सबके दिल का दर्द है, शायर का अहसास।।
आमों की अमराइयाँ, औ’ बरगद की छाँव।
धूप देखकर शहर की, याद आ रहा गाँव।।
सोने से ज्यादा खरी, बच्चे की मुसकान।
ये दौलत सबसे बड़ी, जान इसे नादान।।
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