अरुण कुमार निगम के दोहे
जल ही तो इस जगत में, जीवन का पर्याय।
जल-संरक्षण के लिये, कीजे उचित उपाय।।
अधजल गगरी छलकती, भरी न छलके बूँद।
समझ इशारों को जरा, मत आँखों को मूँद।।
दूषित जल से किस तरह, जीव बुझाये प्यास।
शुद्ध रहें जल-स्त्रोत सब, मिल कर करें प्रयास।।
जल वे भरने आ गये, जलवे लेकर साथ।
नल की साँसें थम गई, खाली गगरी हाथ।।
नल नखरे दिखला रहा, चिढ़ा रहा नलकूप।
पल भर में मुरझा गया, निखरा निखरा रूप।।
ताल-तलैया शुष्क थे, नल की थी हड़ताल।
नयनों का जल छलकता, काजल बहता गाल।।
पानी पानी हो गई, ऐसी आई लाज।
घूंघट पट खोला नहीं, सैंया हैं नाराज।।
देख सकी पनघट नहीं, कैसे भरती नीर।
घूंघट ही बैरी हुआ, कासे कहती पीर।।
घूंघट पट पलटा गई, ऐसी चली बयार।
निर्निमेष पिय देखते, सूरत पानीदार।।
सौ वर्षों के बाद में, आती यह तारीख।
कर्म सदा ऐसे करें, हों वर्षों तारीफ।।
आज किसी सत्कर्म का, करें हृदय अभिषेक।
दुष्कर्मों को त्याग कर, काम करें बस नेक।।
नौ दो ग्यारह दु:ख हों, तीन पाँच दें छोड़।
रस्सी सम मजबूत हो, तिनका-तिनका जोड़।।
लाख पिचासी योनियाँ, काट मिली नर देह।
पुण्य कर्म कर हृदय बसा, प्रेम प्रीत और नेह।।
बावन पत्तों का महल, कभी ना आवे काम।
श्रम से निर्मित झोपड़ा, ही देगा आराम।।
जल-संरक्षण के लिये, कीजे उचित उपाय।।
अधजल गगरी छलकती, भरी न छलके बूँद।
समझ इशारों को जरा, मत आँखों को मूँद।।
दूषित जल से किस तरह, जीव बुझाये प्यास।
शुद्ध रहें जल-स्त्रोत सब, मिल कर करें प्रयास।।
जल वे भरने आ गये, जलवे लेकर साथ।
नल की साँसें थम गई, खाली गगरी हाथ।।
नल नखरे दिखला रहा, चिढ़ा रहा नलकूप।
पल भर में मुरझा गया, निखरा निखरा रूप।।
ताल-तलैया शुष्क थे, नल की थी हड़ताल।
नयनों का जल छलकता, काजल बहता गाल।।
पानी पानी हो गई, ऐसी आई लाज।
घूंघट पट खोला नहीं, सैंया हैं नाराज।।
देख सकी पनघट नहीं, कैसे भरती नीर।
घूंघट ही बैरी हुआ, कासे कहती पीर।।
घूंघट पट पलटा गई, ऐसी चली बयार।
निर्निमेष पिय देखते, सूरत पानीदार।।
सौ वर्षों के बाद में, आती यह तारीख।
कर्म सदा ऐसे करें, हों वर्षों तारीफ।।
आज किसी सत्कर्म का, करें हृदय अभिषेक।
दुष्कर्मों को त्याग कर, काम करें बस नेक।।
नौ दो ग्यारह दु:ख हों, तीन पाँच दें छोड़।
रस्सी सम मजबूत हो, तिनका-तिनका जोड़।।
लाख पिचासी योनियाँ, काट मिली नर देह।
पुण्य कर्म कर हृदय बसा, प्रेम प्रीत और नेह।।
बावन पत्तों का महल, कभी ना आवे काम।
श्रम से निर्मित झोपड़ा, ही देगा आराम।।
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