कपिल कुमार के दोहे  - दोहा कोश

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शनिवार, 14 जनवरी 2023

कपिल कुमार के दोहे 

कपिल कुमार के दोहे 

अस्पताल में हो गई, उसकी खाली जेब|
लाया था वह बेचकर, पत्नी की पाजेब||

चलते-चलते जिंदगी, थक जाती जिस रोज|
नींद बुलाने के लिए, खाती है कम्पोज||

याद रहा दो ग्रन्थ हैं, गीता और कुरान|
लेकिन उनमें क्या लिखा, भूल गया इंसान||

साँसों से है ज़िन्दगी, पैरों से रफ़्तार|
आँखों से है रौशनी, दिल से होता प्यार||

धन की रक्षा के लिए, बनता है संदूक|
उसे तोड़ने के लिए, बनता है बन्दूक||

पल-पल पलटी मारते, मौसम और मिजाज़|
राजा भी जाने नहीं, कब उतरेगा ताज||

रोटी चावल दाल पर, महंगाई की मार|
बनिया भी देता नहीं, कोई चीज उधार||

उलटी गंगा बह रही, ठंडी लगती धूप|
अब बरगद की छाँव में, जल जाता है रूप||

दान भिखारी दे रहा, भीख माँगता भूप|
छलनी अब फटका करे, छाना करता सूप||

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