तोताराम ‘सरस’ के दोहे  - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

तोताराम ‘सरस’ के दोहे 

तोताराम ‘सरस’ के दोहे 

सागर मंथन तो बहुत, होता है हर साल।
महँगाई का हल नहीं, संसद सकी निकाल।।

चीर द्रौपदी का खिचा, लज्जित हुआ समाज।
अब फैशन में नारियाँ, स्वयं उघाड़ें लाज।।

आधा है यह इण्डिया, आधा भारत वर्ष।
इसीलिए हर पल यहाँ, होता है संघर्ष।।

मामूली सी बात पर, बढ़ जाती है बात।
फिर कैसे उम्मीद हो, सुधरेंगे हालात।।

इस आतंकी दौर में, मानवता पर कष्ट।
बहुत जरूरी है सरस, हो आतंक विनष्ट।।

रही दामिनी माँगती, निज रक्षा की भीख।
निष्ठुरता सुनती भला, कैसे उसकी चीख।।

नर-नारी की चाहिए, संख्या अगर समान।
तो फिर कन्या भ्रूण की, रक्षा पर दें ध्यान।।

आया सीमा पार से, भारत में आतंक।
मानवता के भाल पर, सचमुच बड़ा कलंक।।

कारोबार मिलावटी, पकड़ रहा है जोर।
खतरे के हाथों सरस, जन-जीवन की डोर।।

दोहन यदि करते रहे, इसी भाँति अविराम।
खाली होंगे प्रकृति के, निश्चित कोष तमाम।।

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