दीपक गोस्वामी 'चिराग' के दोहे  - दोहा कोश

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शनिवार, 14 जनवरी 2023

दीपक गोस्वामी 'चिराग' के दोहे 

दीपक गोस्वामी 'चिराग' के दोहे 

बूंँद बूंँद अनमोल है, समझो इसका मोल॥ 
इन बूंँदों के वास्ते, पीटोगे फिर ढोल॥ 

माँ की ममता भाव है, और पिता का प्यार।
राखी के धागे बसा, प्रेम भरा संसार।।

विदुरानी का साग हो, या शबरी के बेर।
खाते हैं प्रभु भाव से, नहीं लगाते देर।।

कोयल कहती कूक कर, मीठा बोलो आप।
दग्ध हृदय, मरहम रखो, मिटें सभी संताप।।

जय हो भामाशाह की, किया सभी कुछ दान।
देश भावना हित हुए, राणा जी बलिदान।।

भक्त कहे भगवान से, दर्शन दियो अनूप।
प्रभु बोले अति प्रेम से, लख तू माँ का रूप।।

ग्राम, नगर में है छिड़ा, सत्ता का संग्राम।
धर्म-जाति में बँट गए, गौतम, अल्ला, राम।।

राजनीति मैदान पर, ताने तीर कमान।
रसना में विष घोल कर, चले बैन के बान।

खादी, खाकी, गेरुआ, बजा रहे इक बीन।
माया, सत्ता, सुंदरी, दारू और नमकीन।।

सरकारी धन लुट रहा, लूट लगा कर होड़।
सीधे-सीधे ना मिले, कर ले कुछ गठजोड़।।

नेता की यों कट रही, मित्रो सुबहो-शाम।
सुबह भाल चंदन धरा, पिया शाम को जाम।।

ग्रामों में भी आज-कल, पछुवा चली बयार।
ईद, दिवाली, दशहरा, इनमें दिखे न प्यार।।

सूख गयीं सब बावड़ी, सूख गये सब ताल।
मानव तेरी प्यास से, प्रकृति हुई बेहाल।

अमुवा की डाली नहीं, अब झूलों की डोर।
बौरों में खुशबू नहीं, पंछी करें न शोर।।

करने से पहले करो, जम कर सोच विचार।
फिर पछताये से भला, होता कहीं सुधार।।

दो पल की है जिंदगी, कर ले अच्छे कर्म।
गीता, वेद, पुराण में, लिखा यही है धर्म।।

बुनियादी तामील का, हाल हुआ बदहाल।
बायें कर में कापियांँ, दायें मिले कुदाल।।

बचपन बाँचे पोथियाँ, लेकर हँसिया हाथ।
मजदूरी, शिक्षा कहाँ, कभी निभाते साथ।।

काहे का मजमा लगा, काहे शोक कलेश।
तन-पिंजर ही रह गया, विहग उड़ा परदेश।।

जीवन की इस रेल का, चलता जाए चक्र।
सुख-दुख के ठहराव हैं, राह चक्र की वक्र।।

हाथ-घड़ी, खत,रेडियो, हुए सभी अब मौन।
'मोबाइल' के सामने, टिका भला है कौन।।

करते खूब जुगाड़ ये, खूब लगायें 'पंच'।
अब कवियों को चाहिए, माया, माइक, मंच।

खुदा गजल के बन गए, अदबी ठेकेदार।
हुई अँगूठा माँगते, द्रोणों की भरमार।।

आँगन में जब से खिंची, उसके घर दीवार।
बिना रोग ही हो गयी, तब से माँ बीमार।।

लेते-लेते मर गयी, माँ उसका ही नाम।
सुत पत्नी में खोजता, अपने चारों धाम।।

पल में सब गम हर गयी, वो निश्छल मुस्कान।
बोली उसकी तोतली, छेड़े मीठी तान।


 

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