अरुन शर्मा ‘अनन्त’ के दोहे
बदली संस्कृति सभ्यता, बदला है अंदाज।संबंधो पर गिर रही, परिवर्तन की गाज।।
मैली मन की भावना, दूषित हुए विचार।
क्षणभंगुर है आज की, नव पीढ़ी का प्यार।।
आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षडय़ंत्र।।
हुआ मान सम्मान का, बंधन अब कमजोर।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर।।
नारी को नर से मिले, प्रेम मान सम्मान।
मन से मेरी कामना, पूर्ण करें भगवान।।
उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान।।
नव युग पीढ़ी प्रेम का, करने लगी हिसाब।
हाँ ना के इस खेल में, लुटता गया गुलाब।।
अनहितकारी न्यूनता, सूखे जंगल खेत।
खड़ी अधिकता भी लिए, संकट के संकेत
गहरे सागर से अधिक, सुन्दर निश्चल नैन।
जहाँ डूबने से मिले, व्याकुल मन को चैन।।
सदाचार व्यवहार का, समय गया है बीत।
दौलत जिसकी जेब में, उसकी होती जीत।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें