डॉ.सत्यवीर मानव के दोहे  - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

डॉ.सत्यवीर मानव के दोहे 

डॉ. सत्यवीर मानव के दोहे 

कौन सुनाये अब किसे, मीत दर्द की बात।
सबका छलनी मन यहाँ, सबका छलनी गात।।

सपने चढ़े सलीब पर, साँस हुई सुकरात।
उम्मीदों की अर्थियाँ, फिर भी ढोता गात।।

काया ऐसी कामली, फटना जिसे जरूर।
मानव इसको ओढक़र, करता फिरे गरूर।।

मानव तेरी भूख का, नहीं ओर ना छोर।
पर्वत, नदियाँ, वादियाँ, बनी तुम्हारा कोर।।

धरती माँ की पीर से, बैठे आँखें मूंद।
बदरा बैरी हो गये, डालें ना इक बूंद।।

समझौता तुमने किया, एक बार भी भूल।
समझौता बन जिंदगी, बने राह की सूल।।

सत्य यंत्रणा भोगता, झूठ करे नित मौज।
मेहनतकश भूखा मरे, करे निठल्ला मौज।।

सत्य-धर्म रोते फिरें, नैतिकता बेज़ार।
मानवता पर हो गया, भारी अब व्यापार।।

भली लिखी तुमने प्रभो, मानव की तकदीर।
उसमें आँसू ही लिखे, और लिखी बस पीर।।

तुमने अपनी राह में, बोये खूब बबूल।
मानव अब क्यों खोजता, इन सूलों में फूल।।

जब से आशा बावरी, हुई बिरागी कंत।
जीवन ही लगने लगा, बीता हुआ बसंत।।

सच्चे साधक सत्य के, ज्ञानी संत फकीर।
क्यों सब के सब ले गया, अपने साथ कबीर।।

चले मिलाकर जो नहीं, कदम समय के साथ।
पीछे सबसे रह गये, मलते अपने हाथ।।

सही समय की जो नहीं, कर पाया पहचान।
पीछे छूटा दौड़ में, धरा रह गया ज्ञान।।

जीवन के संग्राम में, हुई उसी की हार।
जो कूदा मझ में नहीं, चला पकड़ पतवार।।

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