मास्टर रामअवतार के दोहे  - दोहा कोश

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शनिवार, 14 जनवरी 2023

मास्टर रामअवतार के दोहे 

मास्टर रामअवतार के दोहे 

कन्या मारी कोख में, फिर पूजन को पाठ।      
नवरातों में भोज को, कन्या मिली न आठ।।

माँ ताकत माँ सम्पदा, जगजननी सर्वेश।  
बड़े न माँ से हो सके, ब्रह्मा विष्णु महेश।।

जब भी आये कह गए, मीठी-मीठी बात।  
मेघ गरजते ही रहे, हुई नहीं बरसात।।

मज़हब नहीं जुनून है, राई बने पहाड़।    
धर्म नाम ऐसा नशा, हो जनता दो फाड़।।

लाज शर्म सब छोड़ दी, दानव-सा व्यवहार।  
जग के ऐसे नाच को, देख रहा ‘अवतार’।।

गर विधवा इक पहन ले, अच्छी-सी पोशाक।  
मिलता सुनने को उसे, कटवाएगी नाक।।

बिजली पानी के लिए, छोड़ा मैंने गाँव।  
वही समस्या शहर में, मिली जमाए पाँव।।

मीरा दासी कृष्ण की, शबरी चाहे राम।  
राम खुशी से खा गए, झूठे बेर तमाम।।

मिली तपस्या धूल में, त्याग गया बेकार।
जीवन के दिन काटती, माँ अब मन को मार।।

कहे मंथरा कर दिया, मैंने नमक हलाल।  
बिठा दिया है कैकयी, सिंहासन पर लाल।।

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