हस्तीमल हस्ती के दोहे - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

हस्तीमल हस्ती के दोहे

हस्तीमल हस्ती के दोहे

किससे पूछें रास्ता, किसका थामें हाथ।
रहबर भी अब हो लिए, राहजनों के साथ।।

हर सूरत यूँ आजकल, देने लगी फरेब।
ज्यों सुन्दर पोशाक के, भीतर खाली जेब।।

रात-दिवस बढ़ते रहे, उन सबके खलिहान।
जिन-जिन की गहरी रही, मुखिया से पहचान।।

धर्म-जाति की रार में, इंसा है बेहाल।
इनसे तो पंछी भले, बैठें एक ही डाल।।

मठ से मधुशाला तलक, एक सरीखे लोग।
कुछ बाहर भोग है, कुछ के भीतर भोग।।

दुख छोटा हो या बड़ा, शाहों से मत बोल।
इनके अपने नाप है, इनके अपने तोल।।

कभी प्यार आँगन कभी, बाँटी हर इक चीज।
अब तक जीने की हमें, आई नहीं तमीज।।

पंछी वो पा ही गई, फिर अपना आकाश।
उडऩे की जिसने रखी, हरदम दिल में प्यास।।

मजहब की इस मुल्क में, इतनी बटी अफीम।
आम्रकुंज भी हो गए, धीरे-धीरे नीम।।

जितना जीवन में रहा, इंसा पानीदार।
उतना ही उसका रहा, हरा-भरा संसार।।

सबके हैं बस में कहाँ, दुख-नदिया का नीर।
या तो पागल ही पिये, या फिर पिये फकीर।।

बेशक मुझको तौल तू, कहाँ मुझे इंकार।
पहले अपने बाट तो, जाँच-परख ले यार।।

हमने तो हर काल में, देखा यही विधान।
राजा की रंगरेलियाँ, परजा का भुगतान।।

जोगन हो या नर्तकी, पंडित हो या शेख।
सबके हाथों में मिली, आँसू वाली रेख।।

बूँदे दिखती पात पर, यूँ बारिश के बाद।
रह जाती है जिस तरह, किसी स$फर की याद।।

साथ हमारे तो हुआ, जीवन भर खिलवाड़।
के वल दो मौसम मिले, या सूखा या बाढ़।।

समय डाकिया बाँटता, सुख-दुख की नित डाक।
कुछ के आँगन गुलमुहर, कुछ के आँगन आक।।

जीवन के मैदान में, चलते अनगिन खेल।
वो खेलो जिसमें रहे, तन और मन का मेल।।

पंखहीन पंछी हुए, शूर-वीर सरताज।
नायक हैं इस दौर के, नाग, भेडिय़े, बाज।।

देख जगत की दुर्दशा, अँखियन उमड़े नीर।
है चोरों के हाथ में, शाहों की तकदीर।।


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