रघुविंद्र यादव के दोहे 1 - दोहा कोश

दोहा कोश

दोहा छंद का विशाल कोश

गुरुवार, 12 जनवरी 2023

रघुविंद्र यादव के दोहे 1

रघुविन्द्र यादव के दोहे

1
खूब किया सय्याद ने, बुलबुल पर उपकार|
पंख काटकर दे दिया, उड़ने का अधिकार||
2
बस्ती में रावण बढे, सड़कों पर मारीच|
घिरी हुई है जानकी, फिर दुष्टों के बीच||
3
कहीं भामिनी लुट रही, जले कहीं तंदूर|
सिया, अहिल्या, द्रौपदी, नया नहीं दस्तूर||
4
गली-गली में हो रहा, चीरहरण अपमान|
अंधे राजा बांटते, पीड़ित को ही ज्ञान||
5
अपने ही शोषण करें, कौन बंधाये धीर|
सभी डालना चाहते, औरत को ज़ंजीर||
6
चीख रही है द्रौपदी, देख रहे सब मौन|
‘केशव’ गुंडों से मिले, लाज बचाए कौन||
7
नारी पूजक देश में, है नारी लाचार|
हत्या, शोषण, अपहरण, भरे पड़े अखबार||
8
रामराज की कल्पना, करे उसे भयभीत|
कैसे भूले जानकी, अपना दुखद अतीत||
9
संसद में होती रही, महिला हित की बात|
थाने में लुटती रही, इज्ज़त सारी रात||
10
नदिया अब कैसे करे, सागर पर विश्वास|
कतरा-कतरा पी गया, बुझी न फिर भी प्यास||
11
बेटी कभी न ले सकी, अपने निर्णय आप|
नारी के दुश्मन रहे, रिश्ते-नाते, खाप||
12
कहीं शिकारी तानते, उस पर तीर कमान|
कहीं भेड़िये घात में, हिरनी है अनजान||
13
नारी को समझा सदा, मर्द जाति ने दास|
ताड़न की अधिकारिणी, कहते तुलसीदास||
14
विधवा होते ही हुए, सब दरवाजे बंद|
आँखों का भी नींद से, टूट गया अनुबंध||
15
सीता को आता नहीं, रामराज भी रास|
अग्नि परीक्षा है कहीं, और कहीं वनवास||
16
बुलबुल ने आकाश में, जब-जब भरी उड़ान|
बाजों ने प्रतिबन्ध के, सुना दिए फरमान||
17
धन-पशुओं ने यूँ किया, धनिया के सँग प्यार|
गले लगाईं रातभर, सुबह दिया दुत्कार||
18
लगा दाँव जिसने किया, नारी का अपमान|
‘धर्मराज’ कह दे रहे, उसे मान-सम्मान||
19
कहते कहते रो पड़ी, बुलबुल अपना दर्द|
अबला की मजबूरियाँ, कब समझे हैं मर्द||
20
जंगल की सरकार ने, साध लिया है मौन|
घायल हिरनी पूछती, न्याय करेगा कौन?
21
पूर्ण सुरक्षा दे रही, भेड़ों को सरकार|
मुस्तैदी से भेड़िये, उठा रहे हैं भार||
22
नहीं सुरक्षित देश में, अब ‘सीता’ का मान|
गली-गली में घुमते, बिना खौफ़ शैतान||
23
विधवा रब से मांगती, अपनी मौत अकाल|
बुरे वक़्त में हो गए, पत्थर भी वाचाल||
24
है नारी के भाग्य में, दर्द, घुटन, अवसाद|
अपने जिसको लुटते, कहाँ करे फ़रियाद||
25
गूँगा-बहरा हो गया, जब से 'सभ्य' समाज|
चौराहों पर लुट रही, अबलाओं की लाज||


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