सुवेश यादव के दोहे
आसमान की रेत में, रहा भटकता व्यर्थ।काश परिंदा जानता, उडऩे का कुछ अर्थ।।
सोने का पिंजरा लिए, फिरता रहा अवाक।
कैद किए सपने मगर, हाथ लगी बस खाक।।
मेरे गाढ़े वक्त में, कतरा रहे हुजूर।
बरगद सा विश्वास था, अब रह गया खजूर।।
नैतिकता भी रोग है, कहने लगा हकीम।
सुबक-सुबक इस बात पर, रोने लगे रहीम।।
जब तक मैं मासूम था, तब तक थे अनुबंध।
दुनियादारी सीख ली, तो बिगड़े संबंध।।
नैतिकता बिकने लगी, गिरवी हुए उसूल।
आमों वाले पेड़ पर, उगने लगे बबूल।।
धोखे और फरेब का, ऐसा फैला रोग।
संबंधों की पीठ पर, छुरा घोंपते लोग।।
रिश्तों में बाजार का, ऐसा चढ़ा खुमार।
विज्ञापन में देखिए, पति पत्नी का प्यार।।
शायर है वह भूख का, नंगों का हमराह।
महफिल में मत लाइए, होगा बहुत गुनाह।।
कौवे भी अब बोलते, मीठे-मीठे बैन।
संतो वाले वेश में, सनी लियोनी फैन।।
संविधान की पीठ पर, शासन की बन्दूक।
बादशाह वाचाल है, सारी जनता मूक।।
दफ्तर दफ्तर मिल रहे, सांकेतिक निर्देश।
स्वाभिमान गिरवी रखो, होगा तभी प्रवेश।।
गारंटी है आपके, होंगे काम जरूर।
उतने सिक्के फेंकिए, जितने कहें हुजूर।।
दरबारी है मीडिया, अखबारी जनतंत्र।
परदा दर परदा छिपा, सत्ता का षड्यंत्र।।
सूरज रक्खे ताक में, जुगनू भेजे चौक।
नकली खुशियाँ बाँटना, शहंशाह का शौक।।
जीवन भर लड़ता रहा, बेचा नही जमीर।
बदहाली में मर गया, सबसे बड़ा अमीर।।
अँधियारे से ऊबकर, क्यों देता है जान।
अरे गरीबा खोज ले, छोटा रोशनदान।।
आने वाली भोर की, किसे यहाँ परवाह।
अँधियारे के साथ हैं, सूरज के हमराह।।
गढ़ें सफलता की कथा, रचें विजय के छंद।
वक्त हमारी बेटियों, की मु_ी में बन्द।।
सपने किस्से लोरियाँ, अनुपम प्यार दुलार।
बेटी को सब दीजिए, जिसकी वह हकदार।।
उस आंगन की पीर को, कौन सकेगा माप।
जिस आंगन को लग गया, बँटवारे का शाप।।
रक्तचाप बढ़ता गया, मुखिया का दिन रात।
खूब कमाया उम्रभर, पायी क्या सौगात।।
खौ$फज़दा हैं तितलियाँ, देखें अपना अंत।
फूलों पर पहरा किए, ऑनर किलर बसंत।।
धरती है अवसाद में, शोक करे दिन रात।
बादल कारावास में, कौन करे बरसात।।
फसलें तड़पें प्यास से, दूर शहर मेंं लेक।
यहाँ गमी है शोक है, वहाँ कट रही केक ।।
पाँव नदी के बेडिय़ाँ, शिखर हुए बेताज।
सोन चिरइया ले उड़ा, एक कमीना बाज।।
थम जाएंगी मुश्किलें, कुछ लहरों के बाद।
मित्रो करिए तो सही, पानी से संवाद।।
समझो गुनो विचार लो, बूंदों का संदेश।
पानी की संभावना, बनी रहेगी शेष।।
थोड़ा सपनों के लिए, थोड़ा अपनों हेतु।
संवादों से जोडि़ए, संबंधों के सेतु।।
कुछ भी हो मत खोइए, जीने का अधिकार।
बढ़ते रहना चाहिए, सपनों का आकार।।
नए-नए हथियार हैं, अंधियारे के पास।
दीपक भी तैयार है, लेकर नया उजास।।
पथिक चला चल राह में, ठीक नही ठहराव।
खुद पर हो विश्वास तो, वक्त भरेगा घाव।।
अर्जुन कायर हो गए, कृष्ण खड़े हैं मौन।
अभिमन्यु की मौत का, बदला लेगा कौन।।
जिस सागर के वास्ते, नदी हुयी बदनाम।
धाराओं के मान को, वही करे नीलाम।।
शब्दों की सामर्थ्य का, कितना करें बखान।
पत्थर को पानी करें, शब्दों में वह जान।।
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