डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा के दोहे - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा के दोहे

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा के दोहे 

सुबह सुनहरी सी सजे, सिंदूरी है शाम।
सुख-दुख में समभाव का, सूरज दे पैगाम।।

आज अँधेरों को चलो, दिखला दें यह रूप।
एक हाथ में चाँदनी, एक हाथ में धूप।।

कुरू सभा सी कुंठिता, रही कलम जो मौन।
दु:शासन को आज के, दंड दिलाए कौन।।

देख लकीरें रो दिया, कल आँगन का नीम।
बच्चों की तकरार में, मात-पिता तकसीम।।

जब लालच की आग को, मन में मिली पनाह।
बेटी का आना यहाँ, तब से हुआ गुनाह।।

रही झेलती वेदना, रोई सारी रात।
कहीं छलकते जाम थे, कहीं लाज पर घात।।

होगा कभी सुराज भी, पाएँ सुख-सौगात।
मुश्किल है मन को बड़ा, समझना यह बात।।

कभी कहे कर जोर कर, कभी करारा वार।
रसवंती, मृदु लेखनी, कभी बने तलवार।।

माटी महके बूँद से, मन महके मृदु बोल।
खिडक़ी एक उजास की, खोल सके तो खोल

फूल कली से कह गए, रखना इतना मान।
बिन देखे होती रहे, खुशबू से पहचान।।


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