अवशेष कुमार ‘विमल’ के दोहे - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अवशेष कुमार ‘विमल’ के दोहे

अवशेष कुमार ‘विमल’ के दोहे 

एक तरफ है लेखनी, एक तरफ हथियार।
काँप गये हथियार जब, पड़ी कलम की मार।।

मिला मुझे सन्तोष धन, फिर क्या करूँ तलाश
मैं तो धरती ही सही, तू हो जा आकाश।।

तेरा यह अधिकार है, निर्भय पीकर घूम।
वो खा जायें देश को, तू मस्ती में झूम।।

कुछ दुष्टों ने धर्म को, बना दिया व्यापार।
धर्म-धर्म कहकर करें, शोषण अत्याचार।।

राग द्वेष मन में बसा, ओढ़ लिया अभिमान।
फिर कैसे होगा ‘विमल’, जीवन में उत्थान।।

डूब गये अभिमान में, जब जब रावण कंस।
तब-तब गये विनाश में, ले डूबे निज वंश।।

चलते-चलते राह में, काँटें लगे अनेक।
जितनी गहरी पीर दी, उतना जगा विवेक।।

तू पूजा तू अर्चना, तू ही नवधा भक्ति।
रुक मत जाना लेखनी, तू ही मेरी शक्ति।।

जिसके सीने में नहीं, छिपा तनिक भी दर्द।
भाव शून्य उस पिण्ड को, कभी न कहना मर्द।

पड़ती रोटी दाल पर, मँहगाई की मार।
अस्त-व्यस्त जीवन हुआ, कैसे पाऊँ पार।।


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