आशा देशमुख के दोहे - दोहा कोश

दोहा कोश

दोहा छंद का विशाल कोश

शनिवार, 14 जनवरी 2023

आशा देशमुख के दोहे

आशा देशमुख के दोहे 

इस दुनिया में हो रहा, लक्ष्मी का सम्मान।
विद्या है परिचारिका, चुप बैठे गुणवान।।
 
 आडंबर को देखकर, मन हो जाता खिन्न।
लोग हुए हैं दोगले, कथनी करनी भिन्न।।

माटी छूटी गाँव की, छूट गया खलिहान।
ऐसी नगरी आ बसे, मुख देखे पहचान।।

आदिम युग की वापसी, पाया फैशन नाम।
खान-पान पशुवत हुआ, असुर सरीखे काम।।

राह तकें नदियाँ सभी, रख निर्जल उपवास।
कब बरसोगे मेघ तुम, बुझे सभी की प्यास।।

महलों की सब क्यारियाँ, हरी-भरी आबाद।
प्यासे हलधर कर रहे, सावन से फरियाद।।

दूध दही नवनीत से, पाषाणों का स्नान।
एक बूँद जल के लिए, तरस रहे इंसान।।

मौन हुई है साधना, मंत्र हुए वाचाल।
किया स्वेद से आचमन, पूजा हुई निहाल।।

कुछ कुत्तों के भोज में, शाही मटन पुलाव।
मरते मानव भूख से, झेलें नित्य अभाव।।
 
असुर सरीखा आचरण, पशुवत है व्यवहार।
मानव से अब साँप भी, माँगे ज़हर उधार।।
 
माया के परिवेश में, घटा ज्ञान का मान।
खड़ी हासिये पर कला, फैशन का अनुदान।।
 
रूढि़-रीति, विज्ञान में, छिड़ा हुआ है द्वंद।
अंध आस्था ने किये, प्रगति द्वार सब बंद।।
 
मूरत आगे भोज है, भूखे मरें गरीब।
परिभाषा क्या दान की, किसके खुदा करीब।। 

मौन हुई है साधना, मंत्र हुए वाचाल।
किया श्वेद से आचमन, पूजा हुई निहाल।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें