पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू' के दोहे
दूध चढ़ा पाषाण पर, करें फ़र्ज़ निर्वाह।बच्चे मरते भूख से, किसे भला परवाह।।
कुआँ पुराना हो गया, अब जर्जर बीमार।
रची नलों ने साजिशें, छीना जल भण्डार।।
पीपल बरगद काटकर, रोपे वृक्ष खजूर।
सडक़ों के निर्माण से, है यह लाभ हुजूर।।
सागर तट बरसात है, तरस रहे हैं खेत।
करनी का फल मिल रहा, हमको सूद समेत।।
दूध पिलाकर आजकल, लगा पालने नाग।
पनप रहा इंसान में, ज़हरीला अनुराग।।
संत लक्ज़री कार में, पैदल भागें भक्त।
कैसा धर्म स्वरूप है, लगा अनोखा वक्त।।
वही आज कानून की, बता रहा है बात।
जिसकी हमको ज्ञात है, भलीभाँति औकात।।
छुपा रहे हैं सत्यता, करते झूठ प्रचार।
पैसा लेकर छापते, खबर रोज अ$खबार।।
गर्व तिरंगे पर करे, पूरा भारत देश।
जिससे निर्मित हो सदा, राष्ट्रभक्ति परिवेश।।
घर से निकलें लड़कियाँ, हलक अटकती जान।
पता नहीं किस वेश में, मिल जाएँ शैतान।।
गुल्लक टूटी याद की, सिक्के निकले चार।
दो बेहद अच्छे मगर, दो बेहद बेकार।।
नहीं भाव उत्कृष्टता, नहीं छंद का ज्ञान।
जता रहे खुद को मगर, बहुत बड़ा विद्वान।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें