अनुपिन्द्र सिंह ‘अनूप’ के दोहे  - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुपिन्द्र सिंह ‘अनूप’ के दोहे 

अनुपिन्द्र सिंह ‘अनूप’ के दोहे 

महँगाई ने कर दिया, इतना मंदा हाल।    
अब तो मुश्किल हो गया, खाना रोटी दाल।।

साया बनती धूप में, बने शीत में धूप।    
सुख देते हमको सदा, माँ के सारे रूप।।

मेरा है यह मानना, मेरा यह विश्वास।      
जग में वो धनवान है, माँ है जिसके पास।।

मत करना तुम दोस्ती, तस्वीरों के संग।    
उड़ जाते हैं धूप में, अक्सर इनके रंग।।

लिखते लिखते थक गए, कितने गालिब मीर।
फिर भी लिख पाये नहीं, मन की सारी पीर।।

सूरज फिर से आ गया, दिन की ले सौगात।
जीत उजाले की हुई, अँधियारे की मात।।

हाल इश्क का देखकर, भरा आँख में नीर।
दस राँझों के प्यार में, डूबी अब इक  हीर।।

सुविधाएँ संसार की, चाहे सब हों पास।  
कुछ अच्छा लगता नहीं, मन हो अगर उदास।

भीगा सावन देखकर, मन में जागा चाव।
खेलूँ फिर बरसात में, ले कागज की नाव।।

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