राहुल गुप्ता के दोहे
बेटा गया विदेश में, भूला माँ का प्यार।बाबा शिकवा कर रहे, माँ करती मनुहार।।
भूल गया माँ बाप को, बेटा था जो एक।
झुकी कमरिया बाप की, चलता लाठी टेक।।
इस जाड़े में सेठ जी, बांटें कम्बल शाल।
अम्मा रहती गाँव में, जाड़े से बेहाल।।
रोटी, कपड़ा, दाल की, बातें हुई हज़ार।
नेताओं को भा रहा, वोटों का व्यापार।।
अफसर करें न अफसरी, वर्कर करें न वर्क।
रिश्वतखोरी के लिए, गढ़ते नित नए तर्क।।
गाँधी जी के देश में, कैसा मचा बवाल।
गुंडे ठेकेदार हैं, नेता हुए दलाल।।
नेता जी सांसद भये, बदला घर का चित्र।
रामदीन के छप्पर का, बदला नही चरित्र।।
रस्ते कठिनाई भरे, मंजि़ल हो गयी दूर।
महँगाई के दौर में, सपने चकनाचूर।।
चपरासी साहब हुए, साहब चौकीदार।
लोकतंत्र का हो रहा, ये कैसा विस्तार।।
भूखे को मिलती नहीं, रोटी चावल दाल।।
नेता जी की पाँत में, मुर्गे हुए हलाल।।
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