डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’ के दोहे
तेरे मन ने जब कही, मेरे मन की बात।हरे-हरे सब हो गये, साजन पीले पात।।
तेरे मन पहुँची नहीं, मेरे मन की बात।
नाहक हमने थे लिये, साजन फेरे सात।।
वो बैरी पूछे नहीं, अब तो मेरी जात।
जिसके कारण थे हुए, सारे ही उत्पात।।
मन की मन ने जब सुनी, सुन साजन झनकार।
छनक उठी पायल तभी, खनके कंगन हार।।
मन की मन से जब हुई, साजन थी तकरार।
जीत सका तू भी नहीं, गई तभी मैं हार।।
प्रीतम के द्वारे खड़ा, मनवा हुआ अधीर।
इतनी देर लगा रहे, क्या सौतन है सीर।।
मन औरत मन मर्द भी, मन बालक नादान।
नाहक मन के व्याकरण, ढूंढ़े सकल जहान।।
मन की मन से जब हुई, थी यारो तकरार।
टूट गये रिश्ते सभी, सब बैठे लाचार।।
मन की राह अनेक हैं, मन के नगर हजार।
मन का चालक एक है, प्यार प्यार बस प्यार।।
मन के भीतर बैठकर, मन की सुन नादान।
मन के भीतर ही बसें, गीता और कुरान।।
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