दिनेश रविकर के दोहे  - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

दिनेश रविकर के दोहे 

दिनेश रविकर के दोहे 

रंगमंच पर दो जमा, रविकर ऐसा रंग।
अश्रु बहे पर्दा गिरे, ताकि तालियों संग।।

नजर-तराजू तौल दे, भार बिना पासंग।
हल्कापन इन्सान का, करे हमेशा दंग।।

बुरे हाल सरकार के, सरका सर का माल।
कड़ी कार्यवाही करे, किन्तु बजा के गाल।।

उनकी मदिरा सोमरस, इज्जत करे समाज।
रविकर पर थू थू करे, जो खाया इक प्याज।।

बुझी-बुझी आँखे लिए, ताके दुर्ग बुजुर्ग।
बुर्ज-बुर्ज पे घर बने, घर घर में कुछ दुर्ग।।

हर मकान में बस रहे, बरबस घर दो-चार।
कान पके दीवाल के, सुन चिकचिक तकरार।।

रस्सी जैसी जिंदगी, तने तने हालात।
एक सिरे पे ख्वाहिशें, दूजे पे औकात।।

छूकर निकली जिन्दगी, सिहरे रविकर लाश।
जख्म हरे फिर से हुए, फिर से शुरू तलाश।।

कभी सुधा तो विष कभी, मरहम कभी कटार।
आडम्बर फैला रहे, शब्द विभिन्न प्रकार।।

वैसे तो टेढ़े चलें, कलम शराबी सर्प।
पर घर में सीधे घुसें, छोड़ नशा विष दर्प।।

चाहे जितना रंज हो, कसे तंज पर तंज।
किन्तु कभी मारे नहीं, अपनों को शतरंज।।

साँपनाथ को नेवला, दिया अभय वरदान।
नागनाथ को नाथ के, बदला सकल विधान।।

कार काफिले में कई, व्यक्ति बड़ा मशहूर।
कंधों पर क्यों ले चले, चारों लोग सुदूर।।

रविकर संस्कारी बड़ा, किन्तु न मानें लोग।
सोलहवें संस्कार का, देखें अपितु सुयोग।।

सिया सती के साथ में, सियासती षडयंत्र।
रक्तबीज रावण बढ़े, मौन खड़ा गणतंत्र।।

वेतन पाकर चल पड़े, लोग निभाने फर्ज।
वे तन देकर दे चुका, मातृभूमि का कर्ज।।

दल के दलदल में फँसी, मुफ्तखोर थी भेड़।
सत्ता कम्बल बाँटती, उसका ऊन उधेड़।।

मनसब की क्या कामना, रे मन  सब की सोच।
हितकारी साहित्य रच, रविकर निस्संकोच।।

जब दरार दीवार में, गिर जाती दीवार।
खड़ी हुई दीवार जब, रिश्ते बीच दरार।।

नहीं घड़ी भर भी रहा, कभी कलाई थाम।
भेज कलाई की घड़ी, किन्तु किया बदनाम।।

कान लगाकर सुन रहा, जब सारा संसार।
कवि सुनता तब दिल लगा, हर खामोश पुकार।।

रखे व्यर्थ ही भींच के, रविकर भाग्य लकीर।
कर ले दो दो हाथ तू, बदल बुरी तकदीर।।

जिंदादिल को कब हुई, निंदा सुन तकलीफ।
मुर्दे ही सुनते सतत, झूठ मूठ तारीफ।।

प्यादे घोड़े ऊँट से, रंज करे शतरंज।
ये वजीर बनते अगर, कसे मूढ़ मन तंज।।

फँसी भँवर में जिंदगी, हाथ-पैर मत मार।
देह छोड़, दम साध के, होगा बेड़ापार।।

आदिकाल से खास जन, रहे चूसते आम।
वही वसूलें आजकल, गुठली के भी दाम।।


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