डॉ.स्वामी श्यामानन्द सरस्वती के दोहे  - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

डॉ.स्वामी श्यामानन्द सरस्वती के दोहे 

डॉ.स्वामी श्यामानन्द सरस्वती के दोहे 

कविता में अनिवार्य है, कथ्य-शिल्प, लय-छंद।
जैसे पुष्प गुलाब में, रूप-रंग, रस गंध।।

कैसे-कैसे बन गए, अब दोहों के ‘पीर’।
समझ न पाये आज तक, जो दोहों की पीर।।

मात्रा गिनना ही नहीं, दोहे की पहचान।
जो जाकर दिल को छुए, दोहा उसको जान।।

चन्दन और पराग क्या, क्या रोली-सिन्दूर।
आता है सबमें नज़र, एक उसी का नूर।।

क्या दोहा, क्या सोरठा, चौपाई, क्या गीत।
गूँजे है हर छन्द में, उसका ही संगीत।।

तेरे दर्शन से हुआ, धन्य-धन्य यह कृत्य।
अंग-अंग करने लगा, कत्थक जैसा नृत्य।।

मन में लादे है मनुज, काम, क्रोध, अभिमान।
ज्यों कागज की नाव पर, आतिश का सामान।।

होता है इस दौर में, जुगनू का सम्मान।
देख रही है चाँदनी, चंदा का अपमान।।

राम करे अब के पड़े, होती के दिन ईद।
गलबहियाँ डाले मिलेंं, तुलसी और फरीद।।

होते हैं भूगोल पर, जो हँस कर कुर्बान।
करता है इतिहास भी, उनका ही गुणगान।।

अपनी लगती है मुझे, इसकी-उसकी पीर।
औरों के दुख से दुखी, श्यामानन्द फकीर।।


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