बिहारी के दोहे  - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

बिहारी के दोहे 

बिहारी लाल के दोहे 

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल|
अलि कलि ही सौं बंध्यो, आगे कौन हवाल||

मोहन मूरति स्याम की, अति अद्भुत गति जोइ|
वसतु सु चित-अंतर, तऊ प्रतिबिम्बितु जग होइ||

कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय|
उहिं खायैं बौराई है, इहिं पायैं बौराय||

या अनुरागी चित की, गति समुझै नहिं कोय|
ज्यौं ज्यौं बूडै स्याम रंग, त्यों त्यों उज्जलु होय||

जप-माला छापे तिलक, सरे न एकौ कामु|
मन कांचै नाचें वृथा, सांचे रांचे रामु||

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