अब्दुर्रहीम खानखाना के दोहे
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़े न बोलें बोल|
रहिमन हीरा कब खे, लाख टका है मोल||
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय|
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ पर जाय||
एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय|
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूले फलै अघाय||
कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन|
जैसी संगति बैठिये, तैसोई फल दीन||
काज पर कुछ और है, काज सरे कछु और|
रहिमन भंवरी के भये, नदी सिरावत मौर||
खैर खून खांसी खुसी, बैर प्रीत मदपान|
रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान||
चाह गई चिंता मिति, मनुआ बेपरवाह|
जिनको कछु न चाहिए, वे शाहन के शाह||
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