वृन्द के दोहे - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

वृन्द के दोहे

वृन्द कवि के दोहे

रागी अवगुन न गिनै, यहै जगत की चाल।
देखो, सबही श्याम को, कहत ग्वालन ग्वाल॥

अपनी पहुँच विचारिकै, करतब करिये दौर।
तेते पाँव पसारिये, जेती लाँबी सौर॥

कैसे निबहै निबल जन, करि सबलन सों गैर।
जैसे बस सागर विषै, करत मगर सों बैर॥


विद्या धन उद्यम बिना, कहो जू पावै कौन।
बिना डुलाये ना मिलै, ज्यौं पंखा की पौन॥

बनती देख बनाइये, परन न दीजै खोट।
जैसी चलै बयार तब, तैसी दीजै ओट॥

मधुर वचन ते जात मिट, उत्तम जन अभिमान।
तनिक सीत जल सों मिटै, जैसे दूध उफान॥

सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय।
पवन जगावत आग को, दीपहिं देत बुझाय॥

अति हठ मत कर हठ बढ़े, बात न करिहै कोय।
ज्यौंज्यौं भीजै कामरी, त्यौं-त्यौं भारी होय॥

लालच हू ऐसी भली, जासों पूरे आस।
चाटेहूँ कहुँ ओस के, मिटत काहु की प्यास॥

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