तुलसीदास के दोहे - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

तुलसीदास के दोहे

तुलसीदास के दोहे

दया धर्म का मूल हैपाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छांड़िएजब लग घट में प्राण।।

राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार|
तुलसी भीतर बाहे रहूँ, जों चाहसि उजिआर||


बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर-नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।

तुलसीजे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।

जड़ चेतन गुन दोषमय, विश्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहीं पथ, परिहरी बारी निकारी।।

चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर।।

तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक।
आदि अंत निरबाहिवो, जैसे नौ को अंक।।

तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहु ओर।
बसीकरण एक मंत्र है, परिहरु बचन कठोर।।

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या, विनय, विवेक।
साहस सुकृति सुसत्याव्रत, रामभरोसे एक।।

नाम राम को अंक है, सब साधन है सून।
अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून।।

तनु गुन धन महिमा धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहु गत जान।।

बचन बेष क्या जानिए, मनमलीन नर-नारि।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।

तुलसीजे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोइ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोइ।।

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