संत कबीर के दोहे - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

संत कबीर के दोहे

कबीरदास के दोहे

फूटी आँख विवेक की, लखे ना सन्त असन्त। 
जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त॥

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय। 
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥ 

जात न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान। 
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। 
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥

माटी कहे कुम्हार सूँ, तू क्या रौंदे मोय। 
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय॥ 

लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत । 
लीक पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत ॥ 

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । 
माली सीचें सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय । 
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडि़त होय ॥

पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार । 
ताते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ॥

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय॥

जात न पूछो साध की, पूछि लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

माया मुई न मन मुआ, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा न मुई, कह गए दास कबीर॥

माटी कहे कुम्हार सूँ, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय॥

लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत ।
लीक पुरानी पर रहें, शूरा सिंह सपूत ॥

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ॥

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडि़त होय ॥

पाहन पूजै हरि मिलैं, तो मैं पूजूं पहार ।
ताते तो चक्की भली, पीस खाय संसार ॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥

रात गँवाई सोय के, दिवस गँवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कौड़ी बदले जाय ॥

गुरु-गोबिंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय|
बलिहारी गुरु आपने, गोबिंद दियो बताय||

एक घरी आधी घरी, आधी हूँ तै आध|
कबीर संगति साधु की, कटे कोटि अपराध||

माली आवत देखि के, कलियाँ करैं पुकार|
फूली-फूली चुनि लई, कालि हमारी बार||

कस्तूरी कुंडलि बसे, मृग ढूंढें बन माहिं|
ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिय देखै नाहिं||

लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल|
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल||


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