राजपाल सिंह गुलिया के दोहे  - दोहा कोश

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गुरुवार, 12 जनवरी 2023

राजपाल सिंह गुलिया के दोहे 

राजपाल सिंह गुलिया के दोहे 

आपाधापी सी मची, बदला देख समाज।
लोग पराई पीर में, खुशी खोजते आज।।

बढिय़ा बँगला ले लिया, गाड़ी उनकी खास।
सपने पूरे कर चले, खेत सेठ के पास।।

बात-बात में ना कभी, आपा खोना आप।
गरमी खाता नीर तो, बन जाता है भाप।।

फोन आज हर एक का, बखिया रहा उधेड़।
इसको सुनकर शेर भी, पल में बनता भेड़।।

अपनी-अपनी सोच है, अपने-अपने ख्य़ाल।
कोई चाहे नाम तो, कोई चाहे माल।।

लेटा जब फुटपाथ पर, कलुआ मन को मार।
टूटे सपनों का लगा, उसको भारी भार।।

मुझे आज भी याद है, वो नन्हा संसार।
बापू जब भी डाँटते, माँ लेती पुचकार।।

सदा जीतते वीर वो, करते पहले वार।
कायरता की कोख से, पैदा होती हार।।

कौन यहाँ खोटा ख्रा, हमको सब है भेद।
केश हमारे ना हुए, खाकर धूप सफेद।।

जिस दिल में रहता सदा, प्रतिशोध का भाव।
हरदम रखता वो हरा, बस अपना ही घाव।।

भोले भक्तों ने किया, पेट काटकर दान।
महंत जी ने ले लिया, होटल आलीशान।।

माँगें सबकी खैर जो, उन पर गिरती गाज।
रहा धनी जो बात का, वो ही निर्धन आज।।


 

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