डॉ उर्मिलेश के दोहे - दोहा कोश

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शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

डॉ उर्मिलेश के दोहे

डॉ उर्मिलेश के दोहे 

इतने थाने देखकर, अक्ल हुई हैरान|
इस बस्ती में किस तरह, जिंदा हैं इंसान||

पल में लगा 'ज़लील' वह, पल में लगा 'जलील'|
दृश्य नहीं हाँ दृष्टि ही, होती है अश्लील||

अपने संयम की सदा, तोड़-तोड़ सौगंध| 
हम खुद से ही जी रहे, नाजायज संबंध||
 
गिद्ध यहाँ से उड़ गए और उड़ गई चील|
बैठ गए उनकी जगह, 'ब्लाक' और तहसील||

तू भी तो अब मौन है, मैं भी हूँ अब मौन|
फिर ये अपने बीच में, बोल रहा है कौन||


ज़लील- अधम/नीच
जलील- प्रतिष्ठित/महान


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