डॉ. लोक सेतिया के दोहे  - दोहा कोश

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शनिवार, 14 जनवरी 2023

डॉ. लोक सेतिया के दोहे 

डॉ. लोक सेतिया के दोहे 

नतमस्तक हो मांगता, मालिक उस से भीख।
शासक बन कर दे रहा, सेवक देखो सीख।।

मचा हुआ है हर तरफ, लोकतन्त्र का शोर।
कोतवाल करबद्ध है, डाँट रहा अब चोर।।

तड़प रहे हैं देश के, जिससे सारे लोग।
लगा प्रशासन को यहाँ, भ्रष्टाचारी रोग।।

दुहराते इतिहास की, वही पुरानी भूल।
खाना चाहें आम और बोते रहे बबूल।।

झूठ यहाँ अनमोल है, सच का ना व्यापार।
सोना बन बिकता यहाँ, पीतल बीच बाज़ार।।

राजनीति में सीखकर, गठबंधन का योग।
देखो मन्त्री बन गये, कैसे-कैसे लोग।।

चमत्कार का आजकल, अद्भुत है आधार।
देखी हांडी काठ की, चढ़ती बारम्बार।।

आगे कितना बढ़ गया, अब देखो इंसान।
दो पैसे में बेचता, यह अपना ईमान।।

अंधे बहरे शहर में, ये बातें बेमोल।
कौन सुनेगा अब यहाँ, ‘तनहा’ तेरे बोल।
               


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