कल्पना रामानी के दोहे - दोहा कोश

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शनिवार, 14 जनवरी 2023

कल्पना रामानी के दोहे

कल्पना रामानी के दोहे 

हवा विषैली हो चली, चलो विहग उस गाँव।
जहाँ स्वच्छ आकाश हो, सुखद घनेरी छाँव।।

समदरसी कहकर गए, तुमको संत फकीर।
फिर क्यों सबकी है भला, अलग अलग तकदीर

सुन सुखदाई सावनी, जल-बूँदों का शोर।
लतिकाएँ बन बावली, चलीं बुर्ज की ओर।।

जितनी सुंदर क्यारियाँ, उतने सुंदर फूल।
रक्षा कवच बने हुए, साथ सजे हैं शूल।।

पंछी कलरव कर रहे, भँवरे गुनगुन गान।
दूर कहीं से आ रही, कुहू कुहू की तान।।

शुद्ध हवा मन भा रही, ठंडी-ठंडी धूप।
नयनों को सुख दे रहा, प्रात: का यह रूप।।

कमतर नर से है नहीं, चाहे कोई देश।
कहीं उड़े नभ में कहीं, श्रम जीवी का वेश।।

भोग छोडक़र योगिनी, बनती हित संतान।
कर देती मातृत्व पर, सारे सुख कुर्बान।।
 
शिखरों को छूने बढ़े, बादल बाँह पसार।
स्वागत करने वादियाँ, कर आईं शृंगार।।

हम तो प्राणी तुच्छ हैं, तुम सबके करतार।
दाता, फिर यह किसलिए, भेद भाव का वार।।


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