डॉ. मधु प्रधान के दोहे - दोहा कोश

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मंगलवार, 14 नवंबर 2023

डॉ. मधु प्रधान के दोहे

डॉ. मधु प्रधान के दोहे

दो रंगी हैं नीतियाँ, दो रंगे हैं भाव।
होठों पर मीठे वचन, मन में भरा दुराव।।

मिली चाँद को चाँदनी, मोती को मृदु आब।
कौन बाँटता फिर रहा, नम आँखों को ख्वाब।।

कागज की कश्ती लिये, बैठा सागर तीर ।
पूछ रहा है बावरा, कितना गहरा नीर।।

आँख मिलाये सूर्य से, किसमें इतनी ताब।
जीवन के हर प्रश्न का, मिलता नहीं जवाब ।।

कस्तूरी है नाभि में, लिये हृदय में पीर।
भटक रहा मृग बावरा, भरे नयन में नीर।।

दो रंगी हैं नीतियाँ, दो रंगे हैं भाव।
होठों पर मीठे वचन, मन मे भरा दुराव।।

चुटकी भर है चाँदनी, बित्ता-बित्ता धूप ।
तोला-माशा जिन्दगी, पल-पल बदले रूप ।।

धुला-धुला आकाश है, चमकीली सी धूप ।
भाव पगे मृदु गीत सा, खिला चाँद का रूप ।।

ठिठके ठहरे चल पड़े, मन को कहाँ विराम ।
जीवन भर चलता रहे, साँसों का संग्राम ।।

सिमटा-सिमटा
है दिवस, सकुचाई सी धूप।
डैने खोले शीत ने, प्रकृति बदलती रूप।।

अब वे निश्छल मन कहाँ, कहाँ प्रेम सद्भाव।
प्रतिस्पर्धा में सभी, जलते नहीं अलाव


सागर सब कुछ दे रहा, जीवन-धन घन प्राण।
मानव अब चेतो जरा, जलनिधि को दो त्राण।।

क्षीण काय नदियाँ हुईं, ढहते पर्वत वृन्द।
दूषित सागर हो रहे, चेत जरा मति मन्द।।

दीप जले रौनक हुई, जगमग ऑंगन द्वार।
हर घर पूनम सा लगे, हुई अमा की हार ।।

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