अनिरुद्ध प्रसाद विमल के दोहे
लिख-लिख कर हम मर गये, मनपांखी बेचैन।
समय कहो, हम क्या करें, कब आयेगा चैन।।
बहुत विवश हो कर रहा, समय आज आह्वान।
चाहत में जो भी रुचे, दो थोड़ा वरदान।।
राणा-ताना रह गया, केवल एक प्रमाण।
भाषण पर ही देश को, चला रहे पाषाण।।
नजर कहीं आती नहीं, सच में कोई वैद।
पत्थर के इस देश में, चाँद चाँदनी कैद।।
चाहे जो सरकार हो, खड़ी झूठ बुनियाद।
जनता के अरमान का, बूँद-बूँद बर्बाद।।
हलकू, झुनियाँ लड़ रहे, ठंड पूस की रात।
कम्बल बिन अब तक रही, है यह दुख की बात।।
समय साथ मेरे नहीं, सच मैं हूँ मजबूर।
कल भी मैं मजदूर था, आज तलक मजदूर।।
समय देखकर हँस दिया, ऐसा हुआ विकास।
जनता धरती पर रही, नेता है आकाश।।
समय साँवरी प्रेम का, मिला मुझे उपहार।
वही प्रेम गुण-शील है, कविता का संसार।।
आज प्रेम का अर्थ हो, सिर्फ-सिर्फ सम्मान।
संग प्रिया गुलजार हो, होगा नया विहान।।
जो भारत की जान से, सचमुच करता प्यार।
युग चेता होगा वही, जागो फिर एक बार।।
तरुण देश हित में जियोे, जीवन चंचल धार।
नया रचो इतिहास अब, बनो-बनो अंगार।।
मनभावन सब झील हैं, सुन्दर-सुन्दर बाग।
लाल-लाल सेबों भरा, है कश्मीरी पाग।।
सारे जग में स्वर्ग-सा, अपना यह कश्मीर।
सना खून से चींखता, विपद बड़ा गंभीर।।
बुझने मत देना कभी, सपनों की कंदील।
झपटो साथी देश के, बन दुश्मन पर चील।।
राष्ट्र एकता के लिये, कर हिन्दी से प्यार।
जग भर करना है हमें, हिन्दी का विस्तार।।
हिन्दी हित जीयें मरें, हिन्दी हित कुरबान।
गगन-मगन होकर करें, हिन्दी का सम्मान।।
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